कहा गया है कि ग़ज़ल की असली कसौटी प्रभावोत्पादकता है . ग़ज़ल वही अच्छी होगी जिसमें असर और मौलिकता हो, जिससे पढ़ने वाले समझे कि यह उन्ही की दिली बातों का वर्णन है.  हिन्दी वालों ने ग़ज़ल को सिर्फ स्वीकार हीं नही किया है , वल्कि उसका नया सौन्दर्य शास्त्र भी गढा है. परिणामत: आज ग़ज़ल उर्दू ही नही हिन्दी की भी चर्चित विधा है ।

ब्लोगोत्सव के छठे दिन कई ग़ज़लकारों की ग़ज़लों को प्रस्तुत किया गया था, किन्तु एक महत्वपूर्ण गज़लकार जो हिंदी चिट्ठाकारी में अपना अलग मुकाम रखता है उनकी गज़लें उस दिन प्रस्तुत नहीं की जा सकी थी . उसी अनुक्रम में आज प्रस्तुत है श्री श्यामल सुमन की ग़ज़ल- अच्छा लगा .....यहाँ किलिक करें 







जारी है उत्सव मिलते हैं एक अल्पविराम के बाद

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