आदिकाल से ही भारतीय समाज की बुनावट कुछ इस तरह से रही है कि यहाँ पर शुरू से ही दो विभाजन पाए जाते रहे हैं। एक शोषक वर्ग और दूसरा शोषित वर्ग। जिसके पास शक्ति रही, सामर्थ्‍य रही वह शोषक बन गया और जो कमजोर पड़ा, वह शोषित होता रहा। समय बदला, लोग बदले, इतिहास बदले, पर एक चीज जो नहीं बदली, वह थी समाज में शोषित लोगों की दशा। चाहे आजादी के 100 साल पहले का जीवन रहा हो अथवा आज का आधुनिक समाज, शोषितों की दशा में आज भी कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आया है। वे शोषित पहले भी थे और आज भी हैं। हाँ आज उन्‍हें एक नाम अवश्‍य मिल गया है, दलित का। कानून में अधिकार भी उन्‍हें मिल गये हैं, आरक्षण भी प्रदान कर दिया गया है, पर कुछ प्रतिशत लोगों की बात अगर छोड़ दी जाए, तो वे आज भी वैसे ही हैं, जैसे पहले हुआ करते थे।

 
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