आज ब्लॉगोत्सव में अवकाश का  दिन है मगर पूरे एक सप्ताह के बाद फिर लगी है चौपाल चौबे जी की, आईए आपका स्वागत है चौबे जी की चौपाल में :

चौबे जी की चौपाल


देश जाए भांड में, आपन काम चकाचक|



आज चौबे जी मंहगाई के आसमानी उफान पर चिंतामग्न हैं , कह रहे हैं कि बताओ राम भरोसे,ईलेक्सन से पहिले कह-कहके अघा गए थे बईमान कि कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ, अब डीजल आऊर रसोई गैस का दाम बढ़ा के का कहिहें ?


कहिहें का महाराज, इहे कहिएं कि अंकुरहा होई गए जौ पूरा देस चरत हएं तौ का उनका ना चरई का चाहीं ? हम देस के साथ-साथ चहूँ ओर विकास क कीर्तिमान बनाए क दिशा मा प्रयासरत हईं आऊर तौ कहत हौ के कहीं विकास नाही दिखाई देत ? टुटपुजिया नेता सफारी से चलै लागे,दफ्तर के बाबू एक नाही दो-दो हवेली राजधानी मा बनवाये लिहिन, कईयों दफ्तरन के चपरासी करोड़ंन मा खेलै लागे, सटहे - सटहे परधान बुलैरो खरीद लिहिन ...कईसे कहत हौ कि ई देस मा तोहके विकास नाही बुझात ? बोला राम भरोसे |


सही कहत हौ राम भरोसे भईया , व्यर्थ के हाय-तौबा मचयेला से का फ़ायदा, अरे कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ नाही है त केकरे साथ है ? मंहगाई रुपी डायन हो चाहे भ्रष्टाचार रुपी दानव आखिर दुनु आम आदमी के ही साथ-साथ हैं न ? जे कुछ भी कमाके मंगरुआ लावत हैं, मंहगाई डायन खाए जात हैं और जब कभी हक़ की बात करौ तो हाथ के साथ लाठी भी पड़ जात है | खुद बिना इजाजत विरोध करत हैं सब, आऊर लाठी खएला के बाद दोष कांग्रेस के देत हैं बहुत नाईंसाफी है भईया ,बोला गुलटेनवा |


मगर मानै के पडी जयपाल रेड्डी के बयान के जे कीमत बढ़ाये के, बेहया जईसन मुस्काये के कहलें कि ई मामूली बात है | बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा ? वातानुकूलित घरवा में बईठ के गाँव की पीड़ा महसूसते हैं, बुलेट प्रूफ शीशे के भीतर अपराध का जाएजा लेते हैं, विपक्ष सुगबुगाए त कहेंगे सोच बीमार है, जनता पगलाए गयी है ,सच्चाई से बेजार है .....मंहगाई तो आवादी की तरह बढ़ने वाली चीज है बढ़ेगी ही , ये सब मुद्दे निरर्थक है बेकार है | आम आदमी के तन-बदन में सुलगती आग की तपिश महसूस वो क्यों करें , जनता जाए भांड में, जिए चाहे मरे | जनता की जेब मा फूटी कौड़ी नाही -नेता स्विस बैंक मा धन सुद्धि करत हैं | जनता को पगडंडी भी नसीब नाही होत -नेता बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चालत हैं...हवा मा उड़त हैं | जनता क दू जून की रोटी नाही मिळत -नेता विदेशी चाकलेट खात हैं | जनता क हकीम की पुडिये वाली दवा भी नसीब नाही, नेता विदेश मा इलाज करावत हैं | जनता क सर छुपावे खातिर छत के लाले पड़े हैं - नेतवन कोठी में रहत हैं | जनता खातिर बढ़िया पढाई क व्यवस्था नाही- नेता के बच्चे देसी-विदेसी ईस्कूल मा पढ़त हैं | भारी पड़ गए जनता के वोट के ऊपर बईमान... जनता जमीन पर कराहती रही और नेता पहुँच गए आसमान | जवन मंत्रिमंडल मा चार-चार एक्स बित्त मंत्री विराजमान हो, सोनिया चाची की अक्ल की कमान हो आऊर शीर्ष आसन पर मनमोहनी मुस्कान हो , ऊ मंत्रिमंडल के अर्थशास्त्र पर कवन शक करी ? जे शक करी ओकर जिनगी जियल हराम हो जाई, कुछ समझ मा आयल गजोधर भाई ? पूछा रमजानी |


हाँ समझ मा थोड़ा-थोड़ा आये गए रमजानी मियाँ ! यानी कि रोटी नाही ...नो प्राब्लेम | पानी नाही...नो प्राब्लेम |कपड़ा नाही...नो प्राब्लेम | छत नाही...नो प्राब्लेम | सड़क नाही....नो प्राब्लेम | स्कूल नाही...नो प्राब्लेम | नौकरी नाही...नो प्राब्लेम | शर्म-लिहाज नाही....नो प्राब्लेम | इज्जत महफूज नाही...नो प्राब्लेम | ईमानदारी नाही...नो प्राब्लेम | विकास नाही ....नो प्राब्लेम | जहां इतने बड़े-बड़े अर्थशास्त्री मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे हों वहां जनता प्राब्लेम के बारे में सोचकर अपना बी पी क्यों बढाए , ह्रदय रोगी क्यों बने | यानी अपना खातिर नेता क साधै रहो,पटियाये रहो, दरबार किहे रहो.....परसेंटेज फिक्स करके आपन फ़ायदा कराये लेओ...देश जाए भांड में, आपन काम चकाचक |


सबकुछ त बताये दियो, मगर ई बताओ देश भांड मा जाए से कईसे बची ? बहुत देर से खामोश तिरजुगिया ने अपनी खामोशी तोडी |


हम तोहके बताबत हईं , देख ई देश मा लोकतंत्र है आऊर लोकतंत्र का सबसे बड़ा मजाक जानत हौअ का है ?


का है चौबे महाराज ?


सबसे बड़ा मजाक है कि चपरासी की नौकरी खातिर ई देश मा योग्यता का मापदंड है,मगर नेता बने खातिर कवनो कायदा क़ानून नाही | आठ दर्जे तक पढ़ल-लिखल आदमी चपरासी नाही बन सकत हमरे देश मा, लेकिन अंगूठा छाप नेता का मंत्री बन जात है ....कवनो छोट-मोट मारपीट का मामला हो जाए त चपरासी की नौकरी के रस्ते में चीन की दीबार बनके खडा हो जात है ...मगर वाह रे नेतागिरी का कायदा-क़ानून, घोटाले पे घोटाले किये जाओ....रंगदारी वसूले जाओ.....सड़क पर खून की नदिया बहाते जाओ ....जातियों को भिड़ाते जाओ आऊर इसके एवज में सांसद से मंत्री बन जाओ | भईया मेरे नेतागिरी का मतलब है सब धन बाईस पसेरी ....का रे तिरजुगिया, समझ गया कि फिर से समझाएं ...नेतागिरी के बारे में और कुछ बताएं ?.


समझ गए महाराज, बहुत अच्छी तरह से समझ गए, मतलब ई कि अपना काम बनता, भांड में जाए जनता |


चल जब हमरी बतिया तोहरे समझ मा आ गयी तो स्थगित करते हैं चौपाल अगले शनिवार तक के लिए , इतना कहकर चौबे जी ने आज की चौपाल स्थगित कर दिया |


रवीन्द्र प्रभात
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परिकल्पना ब्लॉगोत्सव के विशेष सत्र में उपस्थित हैं आज दैनिक जनसंदेश टाइम्स के मुख्य संपादक डा. सुभाष राय जी अपने एक ललित निबंध के साथ .....उन्हें पढ़ने के लिए यहाँ किलिक करें !

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