उत्सव के लिए द्वार द्वार घूमते घूमते मैंने देखा - ' आत्मा अमर है ' मैं विस्मित मिलता रहा , नए शरीर में पुरानी आत्मा से . कभी दिनकर, कभी पन्त, कभी प्रसाद, महादेवी, अमृता.... अचंभित हो गीत नया गाता हूँ जब अपनी यात्रा से कुछ विशेष लिए आता हूँ ....
आज की विशेषता हैं कवयित्री डोरोथी -


काफ़िला सूरज का

मची है खलबली चांदनी की महफ़िल में,
सुना है आ पहुंचा नजदीक काफ़िला सूरज का.
........
मिटने से लगे है सदियों पुराने दायरे अब अंधेरों के,
जबसे होकर गुजरा है बस्तियों से काफ़िला सूरज का.
........
अंधेरों में जो घिरे बैठे थे खोए खोए,
ढूंढने आया है खुद चलकर उन्हें काफ़िला सूरज का.
........
लेके आया है वो एक समंदर रोशनी का,
जो भी डूबेगा उसी का हो गया काफ़िला सूरज का.
........
कैद कर लाया है वो रफ़्तार एक बवंडर का,
अब न रूकेगा चल पड़ा है जब काफ़िला सूरज का.
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तिनकों से उखड़ जाएंगे जड़ समेत ये बरगद सारे,
रूख हवाओं का जब बदल देगा काफ़िला सूरज का.
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आने वाले समयों में....



संभावना बची रहे
आने वाले समयों में
जिंदगियों में हमारे
हंसने की/ गाने की
रोने की/ शोकित होने की
बचपने की/ मूर्खताओं की
पागलपन की/ गल्तियों की
........
संभावना बची रहे
महज कंकड़ पत्थर
या तुच्छ कीट कीटाणु
निष्प्राण पाषाण/ या
बर्बर पशु बनते जाने के,
मनुष्य बने रहने की
........
संभावना बची रहे
इस आपाधापी/ कोलाहलमय
जीवनों में
आकाश की ओर ताकने की
और लहरों को गिनने की
हमारी उबड़खाबड़ जिंदगियों में
स्नेह, संवेदना एव करूणा की
कोमल कलियों के खिलने की
........
संभावना बची रहे
जीवनों के
खिलने की/ पनपने की
सपने देखने की
नई सृष्टि रचने/ बनने की
मनों के/ अंधेरे
सर्द/ सूने गलियारों में
सूरज के किरणों के
अल्हड़ ताका झांकी की
........
संभावना बची रहे
तमाम दुश्मनी और दूरियों को भूलकर
आपस में/ एक दूसरे के लिए
महज मूक दर्शक/ तमाशबीन बने रहने के
दर्पण और दीपक बनने की
हमसफ़र और रहनुमा बनने की
........
संभावना बची रहे
हमारी सुविधाभोगी, मौका परस्त
मतलबी, हिसाबी किताबी जिंदगियों में
कभी कभार, यूं ही
बेमकसद/ बेवजह जीने की
दूसरों को अपने किसी स्वार्थ सिद्धि हेतु
महज साधन या सीढ़ी सा
इस्तेमाल करने की बजाए
उन्हें भी खुद सा समझने की
........
संभावना बची रहे
कटु कर्णभेदी शोरगुल के
आदी/ अभ्यस्त हमारे मनों में
कोमल/ निशब्द/ शब्दहीन बातों के
पारदर्शी रूप छटा को
समझने/ पहचानने की
जुबान की दहलीज पर ठिठके/ सहमे
शब्दमाला से कोई सुंदर सा गीत पिरोने की
........
संभावना बची रहे
अर्धसत्यों/ षडयंत्रो
छल प्रपंचो के
काई पटे कीच में
डूबते/ उतराते
महज सांस भर ले पाने की
........
भागमभाग के जिन्न के
पंजो मे दबोची हुई जिंदगियों के
सांस थमने से पहले
मिले फ़ुर्सत पल भर को
भरपूर सांस ले
अपना अपना जीवन
जी पाने की
........
संभावना बची रहे
मिटने/ खत्म होने हम में
छोटे छोटे स्वार्थों के लिए
गिरते हुओं को रौंदकर
सबसे आगे निकलने की प्रवृत्ति का
दूसरे की कीमत पर
खुद को बेहतर सिद्ध करने का
........
संभावना बची रहे
आने वाले समयो में
अंधेरे अंतहीन ब्लैकहोल (श्याम विवर) में
गर्क होती जिंदगियों की विरासतों का
नक्षत्र/ नीहारिकाएं और
अनगिन रोशनी की लकीरें बन
अंतरिक्ष में जगमगाने का !!
........
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बातों की दुनिया

कुछ बातों को
उम्र लग जाती है
सामने आने में
सही वक्त और सही स्थान का
इंतजार और चुनाव करते करते
थक हारकर पस्त हो चुकी बातें
समय आने तक
लुंज पुंज दशा में
खुद अपना ही
मजाक बनकर रह जाती हैं
वो सारी बातें
........
परत दर परत
अर्थों की खोलती वो बातें
गुम हो जाती हैं
हवाओं में
अस्फुट अस्पष्ट सा
शोर बनकर
जब मिलता नहीं
कोई भी इन्हें
सुनने समझने वाला
........
कुछ बातें
हमेशा जल्दबाजी
और काफी हड़बड़ी में
होती हैं
बाहर निकलने के लिए
अपनी बारी तक का
इंतजार नहीं करती
बात बे-बेबात पर
खिसियाकर झल्लाकर
तो कभी इतराकर
या इठलाकर
निकल ही पड़्ती हैं
दुश्मन को धूल चटाने
सब के सामने उसे
नीचा दिखाने
........
शत्रुतापूर्ण ईर्ष्या से भरी
कलह क्लेश की चिंगारियां उड़ाती
अपने शिकार को विष बुझे बाण चुभोकर
करती है
उस अभागे का
गर्व मर्दन
........
कुछ बातें
कोमल दूब सी
उजली धूप सी
भोले विश्वास सी
और पुरखों की सीख सी
जो बहती है ठंडी बयार सी
या बरसती है भीनी फुहार सी
........
कुछ बातें होती हैं
इतनी ढकी छिपी
कि उनकी आहट तक से
रहते है बेखबर उम्र भर
और जान पाते है उनका मायाजाल
उनके बाहर आने पर ही
जब वे तोड़ कर रख देती हैं
एक ही पल में
कितने ही रिश्ते या दिल
या जोड़ देती हैं
एक ही झटके में
टूटे हुए रिश्ते या घर
डोरोथी
http://agnipaakhi.blogspot.com/


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डोरोथी की कविताओं के बाद आइये चलते हैं कार्यक्रम के दूसरे चरण में :

परिकल्पना ब्लॉगोत्सव :

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सफलता का मन्त्र और अन्य कविताएँ

नव -चेतना आओं मिलजुल कर जीवन खुशहाल बनाये समस्याओ का निदान कर नवचेतना जगाये यथार्थ के धरातल...
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लोकपाल…जोकपाल…या ठोकपाल ?

व्यंग्य मेरे पड़ोस में एक खन्ना साहब रहते हैं। पुराने ब्यूरोक्रेट हैं , अब रिटायर हो चुके हैं।...
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आशीष राय की दो कविताएँ

प्लवन तपती दुपहरिया गुजर चुकी , गगन लोहित हो चला उफनाते नयनों से ढलकर, दुःख मेरा तिरोहित हो चला...


इसी के साथ  आज का कार्यक्रम संपन्न, मिलते हैं फिर सोमवार को सुबह ११ बजे परिकल्पना पर पच्चीसवें दिन के कार्यक्रमों के साथ, तबतक के लिए शुभ विदा

14 comments:

  1. बेहतरीन रचनाएँ,सुन्दर अभिव्यक्ति, पढ़कर आनंद आ गया.....बधाईयाँ डोरोथी ,आभार परिकल्पना !

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  2. सभी कवितायें एक सन्देश के साथ आगे बढ़ रही है, ऐसी कविताओं की प्रस्तुति के लिए रश्मि जी और रविन्द्र जी को आभार !

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  3. बहुत बढ़िया , बहुत ही सारगर्भित ...बधाईयाँ !

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह …………गज़ब्।

    आपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  5. अभी तो डोरोथी की कविताओं में ही उलझ कर रह गया।...बहतरीन कविताएं पढ़वाने के लिए धन्यवाद।

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  6. सारी ही रचनाएँ अच्छी लगीं ..सम्भावना बनी रहे बहुत पसंद आई

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  7. विलंब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं... परिकल्पना के इस चर्चा में मेरी रचनाओं को स्थान और सम्मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद... आभार...
    सादर,
    डोरोथी.

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  8. khubsoorat rachnaon se rubaroo karane ka shukriya.... Dorothie ji ko bhi badhai....

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  9. डोरोथी जी की कवितायेँ बहुत ही अच्छी लगी ...सभी सुन्दर रचनाओं के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद....

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  10. हमेशा की तरह शानदार प्रस्तुती। धन्यवाद।

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  11. परिकल्‍पना उत्‍सव की सभी रचनाएं एक से बढ़कर हैं ... डोरोथी जी की इन बेहतरीन रचनाओं की प्रस्‍तुति का आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  12. कुछ बातें
    हमेशा जल्दबाजी
    और काफी हड़बड़ी में
    होती हैं
    बाहर निकलने के लिए
    अपनी बारी तक का
    इंतजार नहीं करती
    बात बे-बेबात पर
    खिसियाकर झल्लाकर
    तो कभी इतराकर
    या इठलाकर
    निकल ही पड़्ती हैं
    दुश्मन को धूल चटाने
    सब के सामने उसे
    नीचा दिखाने

    जवाब देंहटाएं

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