हाशिये का समाज केंद्र की ओर....

बहाना था रवीन्द्र प्रभात की नई पुस्तक "हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास" के लोकार्पण का . इस मौके पर भाषा, बोली, लिपि से लेकर न्यू मीडिया के वर्तमान और भविष्य तक पर गहन चर्चा हुई. लखनऊ के जयशंकर प्रसाद सभागार में विगत ११ सितंबर को एक संगोष्ठी में साहित्य, आलोचना और रंगकर्म के क्षेत्र से जुडी कई बड़ी हस्तियों -डी. के. श्रीवास्तव,मुद्रा राक्षस,सुभाष राय,विरेन्द्र यादव,शकील सिद्दीकी,राकेश के अलावा  आसपास के जनपदों से आये भाषा और साहित्य के विद्वानों की मौजूदगी में मीडिया और न्यू मीडिया की भूमिका पर बात हुई.....!

आज दैनिक जनसंदेश टाइम्स ने उक्त कार्यक्रम के विमर्श को सहेजते हुए एक राष्ट्रव्यापी चर्चा  को जन्म दे दिया है . पूरा पढ़ने के लिए फोटो पर किलिक करें .
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आज राम भरोसे की मडई के बाहर दालान में चौपाल लगाए हैं चौबे जी,कुछ खोये-खोये और चुप्पी साधे हुए । राम भरोसे के उकसाने पर आखिर चुप्पी तोड़ी के बोले महाराज, "का बताएं ..हर साल की तरह इसबार भी आके लौट गया हिंदी दिवस । खुबई पार्टी -फंग्सन हुआ सरकारी विभाग मा । मगर कौन समझाये खुरपेंचिया जी को कि, अब ज़माना बदल गया है भइया। हर चीज मशीनी हो गयी है , यहाँ तक कि भावनाएं भी । भावनाओं की कब्र पर उग आये हैं घास छल- प्रपंच और बईमानी के , ऎसी स्थिति में सच से परहेज़ क्यों नहीं करते ? ठीक है हिंदी हमरी माता है मगर आजकल लोग पत्निभक्त ज्यादा हो गए हैं हमरे हिन्दुस्तान मा । बिना लाग-लपेट के सांच बात कहेंगे तो लग जायेगी खुरपेचिया जी को, इसीलिए हमने कुछ नही कहा । ई बताओ राम भरोसे तुमको नही लगता कि पहिले हिंदी हमरी मातृभाषा थी, अब मात्र भाषा हो गई है और यही हाल रहा तो हिंदी को मृत भाषा होने में देर नाही लगेगी । का गलत कहत हईं ?  दैनिक जनसंदेश टाइम्स में आज प्रकाशित चाबी जी की चौपाल में आगे पढ़ें >>>>>>

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