प्रिय पापा की परछाईं,
खुशहाली की अंगड़ाई ।


सौजन्य-गूगल
प्यारे दोस्तों,

अभी  मेरे हाथों में, एक `नवजात पिता` की निजी डायरी है । चलिए, उस पति महाशय को, `नवजात पापा` बनने के बाद कैसा महसूस हुआ और `नवजात पापा = नवजात पप्पूपापा बनने की कसौटी में पास हुआ या नापास ये भी उन्हीं से जानने की कोशिश करते हैं..!! मैं आपको उनकी डायरी के कुछ पन्ने ही पढ़कर सुना देता हूँ, ठीक है?

नवजात संतान के नवजात पिता की डायरी से कुछ यादगार लम्हें..!!

"सांस-सांस बस,उमंग उर में झिलमिल  है  करता..!
 नन्हा  सा कान्हा मेरा  कैसे, खिलखिल  है  हँसता..!


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पापा, ड़रना मना है?


किसी भी इन्सान के जीवन में सब से अधिक आनंददायक पल, उनके घर में, नन्हे बच्चे का जन्म हो, वही पल होती है । सारी दुनिया में, किसी के बाप की भी परवाह न करने वाले, बड़ी-बड़ी मूँछोवाले सुरमाओं की मूँछें खींचनेका अदम्य साहस, यह छोटा सा बच्चा कर सकता है..!!


आज से सात दिन पहले मेरे घर भी ऐसा ही एक आनंद का शुभ अवसर आया हुआ है, जी हाँ मैं एक बड़े प्यारे से लड़के का पापा बन गया हूँ..!!


अस्पताल में ही सभी को इस नवजात का कोई दूसरा नाम न मिल पाने की वजह से, सभी ने सर्वसम्मति से, अनायास ही,`नानका` नाम रख दिया और केवल सात दिन की आयु के,हमारे नानका साहब का आज सर्वप्रथम गृह प्रवेश हुआ है..!!


हालाँकि,अस्पताल से घर आते ही, `नानका` को देखने के लिए, घर के सारे सदस्य की भीड़ मेरी पत्नी और नानका के आसपास लिपटी रही जिसके कारण मैं, नानका का नवजात पापा उसे ध्यान से, मन भर देख न पाया ।


थोड़ी देर के बाद भीड़ कम होते ही, मैं जब पत्नी के पास गया तब, उसने नानका को मेरी गोद में रखते हुए, आनंद के साथ कहा," लीजिए आप का नन्हा सा कान्हा..!! और हाँ, इस घर में आज से आप का एकाधिकार शासन खत्म हुआ..!!"


यह सुनकर, मेरी गोद में हाथ-पैर उछाल रहे, नानका की ओर जब मैंने  देखा तब पता नहीं क्यों,मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि, वह मेरे चेहरे की ओर देखकर मेरी मूँछें ढ़ूँढ़ने का प्रयास कर रहा हो?  


आखिर,मूँछ ढ़ूँढ़ने में नाकाम होते ही, मानो मेरा उपहास कर रहा हो, ऐसा मुँह बना कर, नानका ने  बड़े जोरों से रोना शुरू कर दिया..!! मेरी गोद में नानका को सलामत मान कर, दूसरे कमरे में गई हुई, नानका की मम्मी (मेरी पत्नी) तुरंत भाग कर आ गई और नानका से पूछने लगी,"क्या हु..आ, मे..रे नानका को..ओ..ओ..!!"


फिर भी नानका का रोना बंद न हुआ तो, पत्नी ने मेरे सामने आशंका जताते हुए, नाराज़ स्वर में पूछा,"  क्या किया आपने, नानका के साथ?"


आज दिन तक जब से, मेरी पत्नी शादी करके आयी है,  अगर मैं `रात कहूँ तो रात और दिन कहूँ तो दिन` कहने वाली पत्नी का ,ऐसा हिम्मत पूर्ण, अजीबो ग़रीब, अनपेक्षित सवाल सुनकर, पहले तो मैं क्षुब्ध हो गया और बाद में कोई उत्तर न मिलने पर, ज़ुबान लड़खड़ाने के कारण, आखिर मैं बहुत डर गया..!!


हालाँकि, मेरे जवाब की अपेक्षा किए बिना ही, वो चलती बनी,पर आज ना जाने क्यूँ? मुझे ऐसा लग रहा है कि, आज मेरे ही घर में मेरी, `धोबी का कुत्ता ना घर का घाट का` जैसी हालत करने का, पूरा-पूरा मन बना कर, नानकाजी ने गृह प्रवेश किया लगता है..!!


अभी तक, घर के मुखिया के नाते, घर के सभी सदस्य पर धोंस जमा कर, मैं  आजतक  मनमानी करता रहा था, इस से उल्टा, यह घटना के बाद,  मारे डर के, ` ना निगल सकूँ,ना उगल सकूँ` जैसा कोई दर्द मेरे दिल में  घर कर गया..!!


आप को हँसी आ रही है?



पर इसके लिए, एक ही उदाहरण काफ़ी है, पहले तो लंच समय पर मेरी थाली में, गरमागरम रोटी,सब्जी,दाल-चावल,सलाड,अचार और रोज़ कुछ ना कुछ मीठा भी मिल जाता था, दोस्तों, ऐसी रसवंती थाली की जगह अब सुबह  का पका - बचा, बासी भोजन शाम को और शाम का पका-बचा भोजन दूसरे दिन दोपहर को खाने कि नौबत आ गई है..!!


`तारक मेहता का उल्टा चश्मा, के जेठालाल गड़ा कि माफिक, पूरा शर्ट ख़राब करते हुए, बड़े चाव से आम के रस के बड़े-बड़े कटोरे भर भर के पी कर, खाने के बाद, अपनी फूली हुई तोंद पर हाथ घूमाते-घूमाते, पूरा मोहल्ला सुने, इतनी ज़ोर से डकार लेने का मेरा सुख भी, यही नानका महाशय की वजह से अब छिन गया है । ये सारे सुखमयी डकार, मानो मेरी तोंद के भीतर ही हमेशा के लिए कहीं गुम हो गये हैं..!!


हालाँकि, आज एकबार ग़लती से, ज़ोर से डकार लेने का ऐसा सुख मैंने भोग लिया तो, रसोई में  बर्तन धो रही, नौकरानी ने मुझे बूरी तरह ड़ांट दिया," सा`ब`, ज़रा धीरे से..नानका डर जायेगा..!!" 


उस डेढ़ सयानी नौकरानी पर गुस्सा तो मुझे बहुत आया, पर `काबे अर्जुन  लूटियो वो ही धनुष वो ही बाण` को याद कर के,इतने बड़े घोर अपमान को मैं  अशेष  रूप में  निगल गया..!!


उसके पश्चात तो, अभी तक पूरे घर में, अलमस्त, पागल हुए, किसी जंगली बिल्ले की भाँति, इधर-उधर कहीं भी मुक्त मन से घूमने वाला मैं एक,`नवजात पापा` बिलकुल `मियाँ की भीगी बिल्ली` के माफिक  डरते-डरते, दबे  पाँव  घूमने लगा हूँ..!! दुख तो इस बात का है कि, घर में सभी का ध्यान, मेरी ओर से हट कर,उस नानका की ओर लगने की वजह से, घर में मेरी पीड़ा सुनने वाला भी अब कोई नहीं है ।


मेरे प्यारे दोस्तों,


आज याद आया कि, नानका का, गृह प्रवेश हुए  ढाई माह बीत चुका है और आजकल घर में मेरी हालत अत्यंत दया जनक हो गई है । इन दो ढाई माह  में,मुझे लगता है, बड़ा हो कर नानका, अपने पापा से शायद डरे ना डरे, इस वक़्त तो पापा (मैं) नानका से बहुत  डरने लगे हैं..!!


हाँ साहब, इस बात की एक ठोस वजह भी है, अभी थोड़े दिन से मुझे भयंकर सर्दी-ज़ुकाम हुआ है और आज सवेरे, ग़लती से मैंने, पूरे घर की नींव कांप उठे, इतने बड़े ज़ोर से छींक दिया, जिसकी आवाज़ से नानका बहुत डर गया फिर इतने ज़ोर से रोने लगा कि, वह सिसकीयाँ भर कर रोने लगा ।


बस, हो गया मेरा कल्याण..!!


मेरे छींकने की आवाज़ से, नानका को रोता हुआ देख कर, घर के सारे सदस्य, मेरे सामने बिना कुछ कहे, अपनी नाराज़गी जताते हुए, नानका को शांत करने के प्रयास में लग गए..!!


मेरी पत्नी की नाराज़गी तो यहाँ तक बढ़ गई कि, उसने हमारे घर का मुख्य दरवाज़ा दिखाते हुए, मुझ से ये तक कह दिया कि," आइन्दा, अब अगर आपका छींकने का मन करे तो आप घर के बाहर बरामदे में जा कर छींकना,घर में मत छींकना?"


अ...रे...रे..!! एक वक़्त ऐसा भी था कि, इस मर्द महा मानव का (मेरा), धंधे से लौटते ही, फ्रिज़ के ठंडे पानी और गर्मागर्म ताज़ा चाय-नाश्ते से,जिस घर में स्वागत होता था, उसे आज छींकने जैसी फ़ालतू प्रवृत्ति करने के लिए, अपने ही घर का दरवाज़ा दिखाया जा रहा है?


आप ही बताइए ना, क्या छींक मेरी कोई रिश्तेदार लगती है कि, मेरी इजाज़त लेकर नाक से बाहर निकलेगी? और फिर, प्रत्येक पल, सिर्फ छींकने के लिए, घर के बाहर गली तक भागना भी क्या अच्छा दिखेगा? मेरे बारे में, गली के लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे?


पत्नी ने दरवाज़ा दिखाया ये बात मुझे तो बहुत बुरी लगी..!!


इस अपमान से, मेरे दिल में कुछ ऐसे भाव उठने लगे कि, " चलों जीव..!! अब इस घर में मेरा स्थान ख़तरे में है और  जब तक ये सर्दी मैया, मेरी नासिका से प्रस्थान कर के, किसी और महा मानव की नासिका में न घुसे, तब तक कुछ दिन के लिए, किसी मंदिर की धर्मशाला में रहने के लिए चले जाना चाहिए क्योंकि, जब तक सांस लेता रहूँगा,छींक तो आने वाली ही है तो क्या मुझे सांस लेना भी बंद कर देना चाहिए..!!


यही सोचते-सोचते, सर्दी की दवाई के नशे के कारण, मेरी आँख लग गई और नींद में मुझे एक अजीबोगरीब ख़्वाब आने लगा..!!


ख़्वाब में मैंने देखा कि, सन-१९७७ में रिलीज़ हिन्दी फिल्म `यही है ज़िंदगी` में, श्रीसंजीवकुमारजी को मिलने के लिए, साक्षात भगवान श्रीकृष्णजी आयें थे, इसी प्रकार मुझ से मिलने के लिए, मंद-मंद मुस्कुराता हुआ कान्हा मेरे सामने खड़ा है..!!

पर ये क्या..!! भगवान श्री कृष्ण का चेहरा हूबहू मेरे नानका जैसा ही तो है..!!

भगवान कान्हा से मैं कुछ कहता इससे पहले ही, कान्हा मुझ से कहने लगा," बस..!!  इतना जल्दी मुझ से थक गया? क्या बिना रो ये ही, तुम इतने बड़े हो गए हो? मुझ से इतना डर गए हो कि, तुम घर से पलायन करना चाहते हो, तुम ये क्यों नही समझते कि, तुम सब को  मिलने के लिए ही तो मैं ने , साक्षात ईश्वर ने, तेरे घर में जन्म लिया है..!!

इतना सुनते ही, मैं बहुत भावुक हो गया और मेरी आँख से आंसु बहने लगे । मेरी आँख से आंसु बहते देख कर, कान्हा ने अपने छोटा सा हाथ आगे बढ़ाया और अपनी नन्हीं-नन्हीं सी ऊँगलियों से, हल्के से, मेरे आंसु पोंछे..!!

भगवान कान्हा का स्पर्श होते ही, मेरा सारा दर्द न जाने कहाँ ग़ायब हो गया और साथ में मेरा ख़ाब भी टूट गया ।  अब मैंने  देखा कि, बिलकुल  मेरी बगल  में, नानका को सुलाकर, उसकी मम्मा सामने खड़ी है, नानका के हाथ मेरे गाल पर है और मुझे देख़ कर, वह हूबहू भगवान श्री बाल कान्हा कि माफिक मेरे सामने, अपनी चिरपरिचित मंद-मंद मुस्कान बिखेर रहा है..!!

नानका को मेरे सामने मुस्कुराते देख कर,  उसकी मम्मा ने नानका को झूठमुठ  ड़ांटते हुए कहा," सारा दिन तेरी एक मीठी सी मुस्कान देखने के लिए हम सब तरस जाते हैं और, तेरी मधुर मुस्कान का सारा ख़ज़ाना, अपने पापा पर लूटाता है, बद..मा..श..!!"

इतना कह कर, घर के बाकी सदस्य को भी, नानका की मधुर मुस्कान दिखाने के लिए,  नानका की मम्मा ने, सभी को बड़े ज़ोर से आवाज़ लगाई..!!

यह देख कर मैंने पत्नी को ड़ांटा," ज़रा धीरे-धीरे..!! नानका डर जायेगा..!!" 

हालाँकि, अब मैं इतना आश्वासन ज़रूर ले सकता हूँ कि, " सर्दी मैया की अब, ऐसी की वैसी, छट्..!!

हमें तो लगता है, जिस रोज़, किसी नानका के मम्मा-पापा से लेकर घर का अन्य कोई भी सदस्य, साक्षात भगवान श्री कृष्ण समान अपने-अपने नानकाओं से थक-हार कर उनसे दूर भागने लगेंगे उस दिन, पूरी धरती अनंत में लुप्त हो जाएगी?

दोस्तों, ईश्वर से  मैं  यह प्रार्थना कर रहा हूँ कि, आपका घर ऐसे ही छोटे-छोटे नानकाओं की, खिलखिलाहट भरी हँसी से सदैव गूंजता रहे..!!

॥ पितृ देवो भवः ॥

एक नवजात पापा का नमस्कार ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक- १२-०६-२०११.

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