उत्सवी मंच के चारों तरफ मुखरित पन्ने फ़ड़फ़ड़ा रहे हैं, हवा में उड़ते एहसास  … मैं संजीवनी की तरह उन्हें संजो रही हूँ, कब किसकी खोई उम्मीदों को,बंद मन के दरवाजों को इनकी जरुरत हो, कौन जाने !

    रश्मि प्रभा 


कौन मरा है भला आज तक

‘निर्वाणा’ बैकग्राउंड में चल रहा है.
कम एज़ यू आर...
और इस वक्त लिखने का बिलकुल भी मन नहीं.
इस क्षण की मनः स्थिती मेरे अस्तित्व का डी एन ए है...
सबसे क्षुष्मतम इकाई
तथापि, मेरे अस्तित्व की सारी आवश्यक जानकारी अपने आप में समेटे हुए
तो इस वक्त ‘भी’ लिखने का बिलकुल मन नहीं है.
शायद इसलिए ही लिख पा रहा हूँ.
फेसबुक में एक पर्सनल मैसेज पॉप अप होता है...
“आप सबसे ज्यादा किस चीज़ से डरते हो?”
“मृत्यु से”
“लेकिन आप तो कहते हो कौन मरा है भला आज तक?”
“इसलिए ही तो डरता हूँ”
दूसरों के प्रश्नों के उत्तर देते वक्त मुझे उन प्रश्नों के भी उत्तर मिलते रहे हैं
जो प्रश्न (उत्तर नहीं) मुझे आज तक ज्ञात ही न थे.
अकेलापन एक गर्भवती त्रासदी है
जो अतीत में सदा विक्षिप्तता ही जनती आई है
“तुम कितनी बकवास बात करते हो न आजकल?”
“हाँ ये अच्छा है.”
म्युज़िक प्लेयर्स में शफल का ऑप्शन
विचारों को विचार करके ही बनाया गया है.
गीत बदल चुका है...
...लव विल टियर अस अपार्ट अगेन.

......

दर्पण साह 


दोस्ती और दुश्मनी के बीच

दोस्ती और दुश्मनी के बीच
बचा हुआ रहता है
एक रिश्ता, किन्तु 
अभी तक हम खोज नही पाए हैं
कोई मुकम्मल नाम इसका 

यकीनन हम सभी तलाशते रहते हैं
मिठास और कडवाहट से परे
कुछ क्षणों के लिए शिथिल पड़ चुके
रिश्ते के लिए 
एक मकबूल नाम
जिससे कर सके संबोधन
एक –दूजे को

हम मनुष्य हैं
और हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है
कि हम अलग नही कर पाते
अपने अहं को
हमारी अपेक्षा हमेशा
दूसरों से ही होती है
और इसी तरह बनी रहतीं हैं दरारें
रिश्तों में
जिसे भर नही पाता
कोई भी सीमेंट 

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नित्यानंद गायेन 



इसी के साथ आज का कार्यक्रम संपन्न, कल अवकाश का दिन है, मिलती हूँ फिर परसों परिकल्पना पर सुबह १० बजे.....







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