स्वागत है आप सभी का, ब्लॉगोत्सव-२०१४ में

गुस्ताखी की सजा कहो 
या लिखने की अदा 

बुलाया है तुमको अधिकार से 
अब तो कहो 
लो आ गए हम तुमको लेकर  … क्यूँ ?

          रश्मि प्रभा 



अठन्नी तो बचाओ (चवन्नी प्रकरण)

सुबह-सुबह की खबर पर
पड़ी जब नज़र
प्यारे ने पुकारा
प्रभु! तेरा ही सहारा...
आज संसार का तुमने
क्या हाल कर दिया
मंहगाई को जवान
और
प्याज को बदनाम कर दिया

कितने सुखी थे हम
इकन्नी दुअन्नी के जमाने में
एक उम्र बीत गई थी
चवन्नी कमाने में
आज उसी चवन्नी को
कर दिया आऊट
क्या आयकर विभाग को था
मेरी चवन्नी पर डाऊट?

हे सर्वशक्तिमान
कोई उपाय बतलायें
सरकारी चंगुल से मेरी
चवन्नी को छुड़वायें...

सुनकर प्यारे की चिल्ल पौं
पत्नी दौड़ी आई
तुमको भी न प्यारे जी
कभी अकल न आई
बेवजह इतना चिल्लाते हो
सुबह सुबह बेचारे
पडौसियों को जगाते हो...

सुनकर पत्नी की फ़टकार
प्यारे लाल बोले
सुनो मेरी सरकार
क्या जमाना आ गया
मेरी चवन्नी को ही
खा गया...

पत्नी बोली प्यारे जी
चवन्नी तो जाने कब से
खो गई थी बाज़ारों में
लुटते-लुटते लुट गई थी
भिखमंगों की कतारों में
और अब तो
भिखमंगो ने भी पल्लू छुड़ा लिया
जाने कबसे
सम्पूर्ण चवन्नी को ही गटका लिया

चवन्नी का तो बस
रह गया था नाम
अस्तित्व तो कबका
सिमट गया श्रीमान...

प्यारे हुए परेशान बोले भाग्यवान
चवन्नी भर की चवन्नी ने
कितनी दौड़ लगवाई थी
तब जाके एक चवन्नी
अपनी जेब में आई थी।
इस छोटी सी चवन्नी ने
कितनों को बना दिया
चवन्नी छाप
कैसे भूल गई हैं
 इसकी गरिमा को आप?

रोते हुए प्यारे को
पत्नी ने समझाया
चवन्नी खोने का गम
है उसे भी बतलाया

जो होना था हुआ प्यारे मोहन
खुद को अब समझाओ
हो सके तो अपनी
अठन्नी को बचाओ...


हास्य कविता

छः महिने की छुट्टी लेकर हम तो बहुत पछताये,
दो हफ़्ते में ही देखो लौट के बुध्दू घर को आये...

सिगरेट,कोकीन के जैसे ही ब्लागिन ने नशा चढा़या
इस ब्लागिन के चक्कर ने निकम्मा हमें बनाया...

जाकर ऑफ़िस में जब बैठे, लेखन का ही ध्यान रहा
बिजिनेस मीटिंग में भी ,कविता का ही भान रहा...

चाय के सब ऑडर हमने उलट-पलट कर डाले
मैनेजर,क्लर्क सभी को कविता पर भाषण दे डाले...

छोड़ काम-धाम सभी जब बैठे तुकबंदी करने
एक-एक कर लग गये सभी कविता लिखने...

कुछ ना पूछो भैया सबने कैसा हुड़दग मचाया 
अच्छे खासे ऑफ़िस को कवि-बंदर-छाप बनाया...

दो हफ़्ते की इस दूरी ने कितना हमे रूलाया
भूले बिजिनेस हम ,जब ख्याल कविता का आया...

न जायेंगे अब छोड़ तुम्हे ए कविता,
कहते है गुड़ खाके...
रहे सलामत अपनी ब्लागिन
करें टिप्पणी बरसाके...


प्रेम-प्रमाण-पत्र

सभी आदरणीय को मेरा नमस्कार,..बहुत दिनो से एक कविता लिखने कि कोशिश कर रही हूँ, मगर ना जाने क्यूँ हर कविता हास्य बन जाती है,अजब तमाशा सा हो गया है,इतनी भाग-दौड़ की ज़िंदगी में भी हास्य जाने कहाँ से आ जाता है,..सोचती हूँ अकेले परेशान होने से अच्छा है अपने मित्रजनों,गुरुजनों को भी थोड़ा हास्य-रस का पान कराया जाए,...

पत्नी बोली आकर पति से,
श्रीमान जी,इधर तो आओ,...
प्रेम बस मुझे करते हो,
प्रमाण-पत्र दिखलाओ...

पति ने कहा, हे प्राण-प्रिये...
ये कैसी बात है बचकानी,
प्रेम बंधन है जनम-जनम का,
इसमे कैसी बेईमानी,...

रूप बदल बोली वो आकर,
हमको मत समझाओ,
करके मीठी बाते हमसे,
हमको मत बहलाओ....

आज पडौ़स के शर्माजी की,
हुई है बडी़ पिटाई,
प्रेम किया पडौ़सन से,
शादी कहीं और रचाई...

जो भी हो तुम आज,
नगर-पालिका जाओ,
मेरे प्रिय प्रेम की खातिर,
प्रमाण-पत्र बनवाओ...

पत्नी-भक्त पतिदेव जी,
चले नगर-पालिका के दफ़्तर,
देख प्रार्थना-पत्र,
हँस दिये सारे अफ़सर...

जन्म-मरण का प्रमाण-पत्र,
सब कोई बनवाये,
प्रेम-प्रमाण-पत्र बनवाने,
पहले मूरख तुम आये...

फ़िर भी चलो नाम बतलाओ,
मेज़ के नीचे से नग़दी सरकाओ,

प्रमाण-पत्र कोई हो,
बन ही जाते है,
इसीलिए तो मैट्रिक पास,
प्रोफ़ेसर कहलाते जाते है,...

देख बहुत हैरान हुए वो,
आये मुँह लटकाकर,
बोले प्रिये नही प्रमाण है,
सुन लो कान लगाकर...

सब कुछ बिकता है दुनिया में,
प्रेम ना खरीदा जाये,
जो पाले इस धन को,
वो प्रमाण-पत्र क्यूँ बनवाये...

फ़िर भी तुमको यकिन नही है,
तो बस इतना बतलाओ,
प्रेम बस मुझे करती हो,
प्रमाण-पत्र दिखलाओ...


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सुनीता शानू 
http://shanoospoem.blogspot.in/

जिंदगी के अनुभव जब पृष्ठ बन एक किताब का रूप लेने लगे...कल्पनाओं कि स्याही जब शब्दों में ढलने लगी...दुनियाँ की खूबसूरती जब दिल में सँवरने लगी...तब दिल ने कहा क्यों न कुछ किया जाये...जिंदगी को दुनियाँ के संग जिया जाये...तब मिला मन के भावों को व्यक्त करने का एक ही जरिया..."लेखन" 


समय है एक विराम का मिलती हूँ एक छोटे से विराम के बाद.....

6 comments:

  1. वाह रश्मि दी आज तो आपके ऋणी हो गये... पुरानी कवितायें पुराना समय याद आ गया। बहुत-बहुत शुक्रिया दी...

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  2. वाह वाह बढिया पढ़ने मिला....

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